पीएम मोदी का जन्मदिन और राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस की सियासी कहानी
मोदी का जन्मदिन और सोशल मीडिया पर बधाइयों की बौछार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा हैं। उनका जन्मदिन हर साल बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। इस बार उनका जन्मदिन और भी खास था क्योंकि वह पचहत्तर वर्ष के हो गए। बीजेपी और सरकार से जुड़े नेताओं के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों की बड़ी हस्तियों ने उन्हें बधाई दी। सोशल मीडिया पर सुबह से ही #HappyBirthdayModi जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे और समर्थकों ने अलग-अलग तरीके से शुभकामनाएँ दीं। लेकिन इसी बीच कुछ ऐसा हुआ जिसने इस जश्न को विवादों के घेरे में खड़ा कर दिया। मोदी के जन्मदिन को विपक्षी दलों और युवाओं के एक बड़े वर्ग ने राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस के रूप में मनाना शुरू कर दिया। ट्विटर से लेकर फेसबुक और इंस्टाग्राम तक हर जगह #राष्ट्रीयबेरोजगारीदिवस जैसे हैशटैग छा गए।
बेरोजगारी दिवस क्यों बना विरोध का प्रतीक
यह स्थिति केवल राजनीतिक बयानबाजी का हिस्सा नहीं थी बल्कि भारतीय युवाओं की गहरी नाराजगी को भी दिखा रही थी। जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नहीं बने थे तब उन्होंने चुनावी मंचों से वादा किया था कि सत्ता में आने पर हर साल दो करोड़ नौकरियाँ दी जाएंगी। यह दावा युवाओं के बीच उम्मीद की किरण बनकर उभरा था। लेकिन दस साल पूरे होने के बाद भी बेरोजगारी का स्तर कम होने के बजाय लगातार बढ़ा है। सरकारी नौकरियों की संख्या सीमित रही, प्राइवेट सेक्टर की स्थिति उतार-चढ़ाव वाली रही और नई नौकरियों का सृजन उम्मीद से बहुत कम रहा। ऐसे में युवाओं ने अपने गुस्से और निराशा को व्यक्त करने के लिए पीएम मोदी के जन्मदिन को ही विरोध का प्रतीक बना दिया।
कांग्रेस का हमला और सोशल मीडिया पर वीडियो
कांग्रेस पार्टी ने इस मौके को भुनाने में देर नहीं की। कांग्रेस ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें मोदी सरकार की रोजगार नीतियों पर सवाल उठाए गए। वीडियो की शुरुआत ही इस वाक्य से होती है कि आज राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस है। इसके बाद मोदी सरकार पर आरोप लगाया गया कि उसने युवाओं को रोजगार देने का वादा करके धोखा दिया। वीडियो में यह भी दिखाया गया कि कैसे चुनावी पोस्टरों पर मोदी सरकार ने हर साल दो करोड़ नौकरियाँ देने का वादा किया था। कांग्रेस ने इसे युवाओं की ललकार बताते हुए लिखा कि अब बहाने नहीं चलेंगे, नौकरी चाहिए।
युवाओं का गुस्सा और व्यंग्यात्मक पोस्ट
युवाओं के बीच इस तरह के पोस्ट खूब शेयर किए गए। झारखंड यूथ कांग्रेस ने ट्वीट किया कि साल बदल गया लेकिन बेरोजगारी का हाल नहीं बदला। सोशल मीडिया पर तमाम यूजर्स ने पुराने बयानों को याद दिलाते हुए मोदी सरकार पर कटाक्ष किया। किसी ने पकोड़ा तलने वाले बयान को आधार बनाकर मजाक उड़ाया तो किसी ने महंगाई और पेट्रोल-डीजल की कीमतों का उदाहरण देकर कहा कि रोजगार केवल भाषणों में है। इस तरह के हजारों पोस्ट सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगे।
बेरोजगारी का बढ़ता संकट और युवाओं की समस्या
इस पूरे घटनाक्रम ने यह दिखा दिया कि देश में बेरोजगारी का मुद्दा कितना गंभीर है। भारत दुनिया की सबसे युवा आबादी वाला देश है, लेकिन यदि इस युवा शक्ति को सही दिशा में रोजगार और अवसर नहीं मिलेंगे तो यह सरकारों के लिए चुनौती बन जाएगी। बीते कुछ सालों में लाखों ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे रहे हैं लेकिन उनमें से बहुत कम को सफलता मिली। रेलवे, एसएससी और राज्य स्तरीय परीक्षाओं में देरी और परिणामों की अनिश्चितता ने युवाओं की परेशानी और बढ़ा दी है।
रोजगार और आत्मनिर्भर भारत की बहस
बेरोजगारी केवल नौकरी की कमी तक सीमित नहीं है, यह सामाजिक और आर्थिक असर भी डालती है। एक तरफ सरकार स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों का प्रचार करती है, दूसरी तरफ लाखों युवा स्थायी नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं। प्रधानमंत्री ने युवाओं को आत्मनिर्भर बनने के लिए कहा, लेकिन हर कोई उद्यमी नहीं बन सकता। हर किसी के पास पूंजी और संसाधन नहीं होते कि वे खुद का कारोबार खड़ा कर सकें। यही कारण है कि बड़ी संख्या में युवा सुरक्षित सरकारी नौकरी चाहते हैं।
सरकार का पक्ष और भविष्य की योजनाएँ
मोदी सरकार के समर्थक यह तर्क देते हैं कि सरकार ने आधारभूत संरचना और डिजिटलीकरण पर जितना काम किया है उससे लंबे समय में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। वे कहते हैं कि रेलवे, मेट्रो, हाइवे, डिजिटल इंडिया और पीएलआई स्कीम जैसी पहलें भविष्य में करोड़ों नौकरियाँ पैदा करेंगी। लेकिन विपक्ष और आलोचकों का कहना है कि युवाओं को भविष्य की नहीं बल्कि आज की नौकरियाँ चाहिए। जब लाखों लोग हर साल रोजगार की तलाश में बाजार में आते हैं तो तत्काल समाधान ज़रूरी हो जाता है।
राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस का असर और राजनीति
राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस का ट्रेंड यह दिखाता है कि अब यह मुद्दा केवल राजनीतिक बहस तक सीमित नहीं रहा बल्कि यह आम जनता खासकर युवाओं का दर्द बन चुका है। सोशल मीडिया पर इस तरह के अभियानों से यह साफ है कि बेरोजगारी युवाओं की पहली प्राथमिकता है। विपक्षी पार्टियाँ इस गुस्से को भुनाने की कोशिश कर रही हैं जबकि सरकार इसे अपनी योजनाओं और उपलब्धियों से संतुलित करने की कोशिश कर रही है।
चुनावी समीकरण और बेरोजगारी का मुद्दा
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बेरोजगारी का मुद्दा आने वाले चुनावों में बड़ा फैक्टर साबित हो सकता है। महंगाई, कृषि और आर्थिक असमानता के साथ यह विषय युवाओं के वोट को प्रभावित करेगा। मोदी सरकार के लिए यह चुनौती है कि वह अपने विकास कार्यों और योजनाओं के बावजूद युवाओं को रोजगार देने के मुद्दे पर संतुष्ट कैसे करे।
विरोध और समर्थन की दो तस्वीरें
मोदी के जन्मदिन पर विरोध और समर्थन दोनों ही तस्वीरें सामने आईं। जहां समर्थकों ने इसे सेवा दिवस के रूप में मनाया, रक्तदान और जनसेवा के कार्यक्रम किए, वहीं विपक्ष और बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं ने इसे राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस घोषित कर दिया। यही लोकतंत्र की खूबसूरती है कि एक ही दिन को लोग अलग-अलग तरीके से देखते और मनाते हैं।
बेरोजगारी दिवस की गूंज और युवाओं की उम्मीदें
इस विवाद ने यह जरूर साबित कर दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मदिन केवल जश्न का दिन नहीं बल्कि युवाओं के सवालों और उनकी उम्मीदों का आईना भी है। बेरोजगारी आज भी भारतीय समाज की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है और जब तक इसका समाधान नहीं होगा तब तक राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस जैसे विरोध अभियान बार-बार जन्म लेते रहेंगे।
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